किसी कार्य में रुकावट डालने से होता अंतराय शरीर कर्म प्रयोग बंध- राष्ट्रीय आचार्य महाश्रमण
ठाणे।आचार्य महाश्रमण ने भगवती सूत्र आगम के आधार पर मंगल देषणा देते हुए कहा कि जैन आगमों में वर्णित आठ कर्मों में अंतिम कर्म है अंतराय। यहां प्रश्न किया गया कि अंतराय शरीर कर्म प्रयोग बंध किन कारणों से होता है। उत्तर प्रदान करते हुए बताया गया कि अंतराय कर्म बंध के पांच हेतु बताए गए हैं- दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय व वीर्यांतराय। इन पांच कारणों से अंतराय कर्म का बंध होता है। जैसा करना वैसा भरना होता है, ऐसा कर्मवाद का सिद्धांत है। यदि कोई किसी के किसी भी प्रकार के कार्य में बाधा डालता है तो उसे भी अपने जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। कोई दान में बाधा डाले तो यह दानांतराय होता है।
दुनिया में दान के भी अनेक प्रकार होते हैं। ज्ञान का दान, धन का दान, औषधि, अन्न, भूमि, भवन आदि-आदि। इसमें भी लौकिक और आध्यात्मिक दान की बात आती है। किसी भूखे को भोजन कराना, अन्न का दान देना, अर्थ का दान देना अथवा भूमि आदि का दान देना लौकिक दान और ज्ञान का दान देना, अभयदान देना और शुद्ध साधु को शुद्ध दान देना आध्यात्मिक दान होता है। आदमी को किसी भी प्रकार के दान आदि में बाधा डालने से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञानदान, साधु को शुद्ध दान और अभयदान देना धर्म दान है।
दान में अंतराय पैदा करने से दानांतराय का बंध होता है। आदमी को इससे बचने का प्रयास करना चाहिए। लाभांतराय का अर्थ जिसे प्राप्त न हो। कई बार प्रयास करने के बाद भी लाभ की प्राप्ति न हो, व्यापार-धंधे आदि लाभ न होना, भोजन का प्राप्त न होना आदि लाभांतराय के कारण होता है। जब कोई किसी दुर्भावनावश किसी के व्यापार-धंधे में बाधा डालना, किसी के आहार-पानी आदि में बाधा डालना, भिक्षा, गोचरी आदि में बाधा डालने से लाभांतराय बंध होता है। आदमी को इससे भी बचने का प्रयास करना चाहिए। दुर्भावनावश किसी के सुख में अंतराय डालने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को भोगांतराय, उपभोगांतराय और वीर्यांतराय से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में यह प्रयास करे कि दुर्भावनावश किसी के कार्य में अंतराय में बाधा न डालने का प्रयास करे तो अंतराय कर्म बंध से बच सकता है।
